Thakur Ka Kuan पर लालू की पार्टी कायम, तो अब Anand Mohan की मजबूरी आप भी समझिए

by Republican Desk
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Bihar News में इन दिनों ‘ठाकुर’ पर संग्राम छिड़ा है। यह संग्राम चुनाव तक जाने वाला है। ऐसा इसलिए भी कि इस विवाद की कमान संभालने वाले ठाकुर आनंद मोहन सिंह अभी मजबूर नजर आ रहे हैं।

भारी उधेड़बुन में फंस गई है पूर्व सांसद बाहुबली आनंद मोहन सिंह की राजनीति, मनोज झा के साथ है पूरा राजद।

क्षत्रियों को साधने के राजनीतिक लक्ष्य के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की महागठबंधन सरकार ने पूर्व सांसद बाहुबली आनंद मोहन सिंह (Anand Mohan) को जेल-मुक्त किया। इस रिहाई के खिलाफ दिवंगत आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया का परिवार सुप्रीम कोर्ट की शरण में है। सरकार अभी इस रिहाई को सही साबित करे, इससे पहले गले की हड्डी बन गई है महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD Party) और आनंद मोहन के बीच की ठाकुरों वाली लड़ाई। बड़ा संकट यह है कि अब आनंद मोहन जाएं तो किधर। जेल से रिहा कराने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ रहेंगे तो महागठबंधन में ही रहेंगे, जहां सबसे ताकतवर दल राजद है। दूसरी तरफ भाजपा है, जिसके शीर्ष नेतृत्व को ही वह अपनी रिहाई के बाद से लगातार अपशब्द कहे जा रहे थे। उनकी औकात बता रहे थे। राज्यसभा सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में ठाकुर का कुआं कविता पाठ किया था, जिसके बाद आनंद मोहन के बेटे और राजद विधायक चेतन आनंद ने इसे क्षत्रियों पर हमला बताते हुए चेताया था। अगले दिन आनंद मोहन इस लड़ाई में उतर आए। दूसरी ओर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) तक मनोज झा के साथ खड़े हो गए।

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मनोज झा के साथ पूरा राजद, जदयू में दो गुट
आनंद मोहन बाहर आने के बाद मुख्यमंत्री और मौजूदा बिहार सरकार के प्रति समर्पित नजर आ रहे थे। वजह भी वाजिब थी। जब उनकी रिहाई नहीं हुई थी तो मुख्यमंत्री के सामने लोगों ने नारेबाजी की थी। इस नारेबाजी के बाद सीएम नीतीश कुमार ने कहा था कि हम उनके लिए (आनंद मोहन) क्या कर रहे, यह उनके परिवार से पूछ लीजिए। इसके बाद आनंद मोहन रिहा भी हो गए। यह रिहाई विशेष आधार पर हुई। उस समय दबी जुबान में विरोध भी हुआ, लेकिन कोई पार्टी मुखर नहीं हुई क्योंकि उसे क्षत्रिय वोट बैंक के खराब होने का डर सता रहा था। रिहाई के बाद आनंद मोहन पूरी तरह सरकार के साथ नजर आए। उनके बेटे चेतन आनंद तो पहले ही राजद विधायक हैं। लेकिन, इस बार विवाद की शुरुआत बेटे के ही कूदने पर हुई। चेतन आनंद ने अपनी ही पार्टी के सीनियर लीडर और राज्यसभा सांसद मनोज झा के खिलाफ आवाज उठा दी। इसके बाद उधर से आनंद मोहन भी उतर गए। आनंद मोहन ने तो यह भी कह दिया कि वह राज्यसभा में उस समय होते तो ठाकुरों पर ऐसी बात कहने वाले की जुबान खींचकर सभापति की ओर उछाल देते। बात ठाकुरों की आयी तो जदयू के भी कुछ राजपूत नेता मनोज झा के खिलाफ आ गए। हालांकि, आनंद मोहन के समर्थन में कोई नहीं।

तो, अब क्या करेंगे आनंद मोहन लाचार ठाकुर बनकर
आनंद मोहन अब लाचार ठाकुर बनकर राजनीतिक मैदान में हैं। चुनावी मैदान में भी अब उनके लिए यही विकल्प बचा है। बिहार में आमने-सामने की लड़ाई में कोई तीसरा मोर्चा बनेगा, इसकी उम्मीद नहीं। मतलब, तीसरा जो भी होगा- किनारे ही होगा। ऐसे में आनंद मोहन को दोनों में से कोई एक ध्रुव पकड़ना होगा। जेल से निकलने के बाद भाजपा को जिस तरह दुत्कारते रहे हैं, वहां कोई इज्जतदार जगह मिलेगी- उम्मीद नहीं है। लेकिन, राजपूतों को साथ लेने के लिए भाजपा समझौता नहीं करेगी- ऐसा भी नहीं है। दूसरी तरफ राजद-जदयू के साथ रहना भी शान के खिलाफ होगा और छोड़ना भी एहसान फरामोश वाली बात होगी।

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