Bihar News : बिहार में इस समय सत्तारूढ़ दलों के अंदर खींचतान नहीं दिख रहा है, क्योंकि जब भाजपा-जदयू के अलावा लोजपा-हम भी साथ है तो परेशानी नहीं दिख रही है। दूसरी तरफ, कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है, सॉल्यूशन कुछ पता नहीं! NDA को क्लिन स्विप करने देना है या रोकना है, फैसला अब लालू प्रसाद यादव और उनके बनाए ‘दूल्हे’ को करना है।
Bihar Election 2025 : सीएम नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव होंगे या नहीं?
बहुत ही गजब खेला हो गया है बिहार (Bihar News) में महागठबंधन के अंदर। राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) ने लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस को खूब छकाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जो विपक्षी गठबंधन बना था, उसका ‘दूल्हा’ उन्होंने ही कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को बताया था, लेकिन जब चुनावी बारात निकली तो उन्हें ही किनारे कर कांग्रेस की चाहत वाली सीटों पर भी राजद के प्रत्याशी दे दिए थे।
अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Election 2025) में लालू के पसंदीदा ‘दूल्हे’ ने हक की बात शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव को याद करते हुए राहुल गांधी पूरे जोश में हैं। अब अगर वह बदला चुकाने पर आ गए तो? इसी फैसले पर निभर्र करेगा कि बिहार चुनाव में NDA सरकार तय या नहीं?
Bihar News : लालू यादव ने ही कांग्रेस को खत्म किया था; बचाने के लिए निकलेंगे राहुल?
सही मायने में देखें तो यह राहुल गांधी की अग्निपरीक्षा है। वह कांग्रेस को बचाने की मुहिम में उतरेंगे या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को हराने के एकल उद्देश्य से। दो विकल्पों की बात भी इसलिए आई, क्योंकि राहुल गांधी ने बिहार आकर राजद के पिछड़े-दलित-गरीब वोटरों को साथ लाने की बात कही है। अ
गर कांग्रेस इस विकल्प की ओर बढ़ती तो है तो राष्ट्रीय जनता दल और खासकर लालू प्रसाद यादव से तीन दशक पुराना बदला लेने के लिए आगे बढ़ जाएगी। इस चुनाव में उसका फायदा शायद ही मिले, लेकिन वह वर्ष 2000 और 2010 की गलतियों से सीख लेते हुए तीन दशक पुरानी-मजबूत स्थिति में कांग्रेस को लाने के लिए पूरे मनोयोग से लग जाएं तो आम कांग्रेसी जरूर उत्साहित होंगे।
Bihar Election 2025 : 1985 का बेंचमार्क लेकर निकलें राहुल, तभी कुछ मिलेगा
बिहार की राजनीति में 1985 के बाद से असल बदलाव दिखना शुरू हुआ था, इसलिए अगर राहुल गांधी कांग्रेस को बिहार में पुनर्जीवित करना चाहते हैं तो उन्हें 1985 का बेंचमार्क लेकर आगे निकलना होगा। उससे पहले का बिहार अलग था। फिर 1985 से 2005 तक का अलग और उसके बाद का अलग। 1985 के चुनाव में बिहार में 324 सीटें थीं, जिनमें से 323 पर कांग्रेस ने प्रत्याशी दिए थे और 196 पर जीत हुई थी। तब भारतीय जनता पार्टी ने 234 सीटों पर प्रत्याशी दिए थे और महज 16 सीटें जीत सकी थी।
आज कांग्रेस लगभग उस समय के भाजपा वाली स्थिति में है और भाजपा उस समय वाली कांग्रेसी स्थिति में। इस समय बिहार की राजनीति को बदलने वाले कारक आज भी पक्ष-विपक्ष की धुरी में प्रभाव रखते हैं। 1990 और 1995 में जब मौजूदा राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाईटेड के नेता एक थे, तो लालू यादव सबसे मजबूत चेहरा बनकर उभरे थे।
1990 में भी कांग्रेस ने 323 सीटों पर ही प्रत्याशी दिए, लेकिन उसकी जीत घटकर 71 सीटों पर रह गई। सामने खड़ा जनता दल था, जिसने 276 सीटों पर प्रत्याशी देकर 122 पर जीत दर्ज की थी। 1995 में जब लालू और प्रभावी हुए तो कांग्रेस को लड़ी गईं 320 सीटों में से महज 29 से संतोष करना पड़ा था। इस बार जनता दल ने 264 सीटों पर लड़ते हुए 167 सीटों पर जीत हासिल की थी। मतलब, पहले से ज्यादा प्रभावी हुई।
इसके बाद लालू ने अपनी ताकत को समझा और 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल को लेकर उतरे। राजद ने 293 सीटों पर प्रत्याशी दिए और 124 पर जीत दर्ज की। दूसरी तरफ कांग्रेस ने 324 पर प्रत्याशी देकर भी महज 23 सीटों पर जीत हासिल की थी। गौरतलब है कि कांग्रेस जब खुद अपने दम पर चल रही सत्ता से बाहर हुई तो थोड़े इंतजार के बाद राजद की पिछलग्गू हो गई और 2005 का विधानसभा चुनाव आते-आते लगभग आज वाली स्थिति में आ गई। वर्ष 2005 में दो बार चुनाव हुए।
फरवरी 2005 के चुनाव में कांग्रेस ने झारखंड बंटवारे के बाद बिहार में बची 243 सीटो में से महज 84 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 10 विधायक लेकर विधानसभा पहुंची। इस चुनाव में राजद को 215 में से 75 सीटों पर जीत मिली। इस चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला था, लेकिन राजद को सर्वाधिक 75 सीटें जरूर मिली थीं।
तब केंद्र की कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सरकार ने बिहार में राष्ट्रपति शासन की पहल कर दी थी। अक्टूबर में जब इसी साल चुनाव हुआ तो कांग्रेस की रही-सही स्थिति भी खत्म हो गई और साथ ही लालू प्रसाद यादव का वर्चस्व भी एक झटके में खत्म हो गया। कांग्रेस ने राजद के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ा।
कांग्रेस को 51 सीटें लड़ने के लिए मिलीं, लेकिन वह महज नौ पर जीत दर्ज कर सकी। राजद ने 175 पर भाग्य आजमाया और हासिल हुई महज 54 सीटें। इसी समय खूब ताकत से बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अभ्युदय हुआ। इस चुनाव में जनता दल यूनाईटेड ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा और 88 पर जीत दर्ज की। भाजपा ने 102 पर प्रत्याशी उतारे और उसे 55 पर जीत मिली। दिवंगत रामविलास पासवान न इधर थे और न उधर, सो उन्होंने 203 पर प्रत्याशी उतारे और महज 10 सीटों पर जीत से संतोष कर रह गए।
Rahul Gandhi : महागठबंधन में ही रह गई कांग्रेस तो क्या उम्मीद?
कांग्रेस ने 2010 में अंतिम बार अकेले लड़कर देखा था। तब वह महज चार सीटों पर सिमट गई थी। उसके बाद पार्टी ने खुद को जिंदा करने का कोई प्रयास नहीं किया। अब अगर राहुल गांधी जिस तरह का संकेत दे रहे हैं, उस हिसाब से चले तो बड़े उद्देश्य के लिए कम-से-कम पांच साल तक लगातार मेहनत का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं।
अगर ऐसा नहीं कर वह राजद के साथ कायम रहते हैं तो उन्हें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के सामने से कन्हैया कुमार को उसी तरह किनारे लगाना होगा जैसे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को लोकसभा चुनाव से पहले हटाया था। इतना कुछ करने के बाद कांग्रेस राजद के साथ उतरकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर सकेगी, इसी उम्मीद बहुत नहीं दिखती है। यह बिहार का गणित रहा कि अगर जदयू-राजद-कांग्रेस साथ रही तो उधर का पलड़ा भारी और इधर जदयू-भाजपा-लोजपा-हम आदि साथ रहा तो इधर का।