Citizen Journalist अमरेंद्र कुमार सिन्हा ने इस तस्वीर के साथ प्रतिक्रिया के रूप में अपनी बात लिखकर भेजी। Swachh Bharat Mission के तहत देश के सबसे स्वच्छ शहर के सामने पटना की हालत पर उन्होंने कैसे रोष जताया, खुद पढ़िए। आप भी अपनी बात लिखकर भेज सकते हैं।
Patna Municipal Corporation या नगर विकास विभाग को कुछ दिखता नहीं?
कई बार पढ़ चुका हूं कि स्वच्छता रैंकिंग में देश के नंबर वन शहर इंदौर को देखने-समझने के लिए बिहार सरकार के मंत्री-अफसर वहां गए थे। कहा तो यही जाता है कि इंदौर स्वच्छता में ऐसे कैसे लगातार अव्वल रह रहा है, यह देखने जाते हैं। लेकिन, मुझे लगता है कि जैसे मटरगश्ती करने के लिए जाते हैं सारे। गए, घूमा-फिरा, खरीदारी वगैरह की, होटल में रहने और आसपास के पर्यटन स्थलों को घूमकर मजा लिया और लौट आए। अगर ऐसा नहीं होता तो आजतक हम इस सड़ांध में रहने के आदी बने रहते?
Swachh Bharat Mission : सफाई के नाम पर अलग से टैक्स वसूली, मगर…
इंदौर मध्य प्रदेश की राजधानी नहीं है। भोपाल राजधानी है। इंदौर तो उदाहरण है। उसने अपनी पहचान बनाई है। बिहार में तो राजधानी पटना छोड़ किसी की पहचान शायद ही बन जाए। शायद नालंदा की पहचान बनाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) लगे हैं तो आज-कल-कभी बन जाए। तो बात पटना की कर रहा था। पटना में हर घर से कूड़ा लेने के नाम पर टैक्स वसूली का प्रावधान बनाया गया है। अगर हर घर इस दायरे में आ गया है और गाड़ी वाला कचरा लेने पहुंच रहा है तो सड़कों पर कचरा कहां से आ रहा है? मुख्यमंत्री, मंत्रियों, अफसरों और न्यायाधीशों के आवास के लिए चिह्नित खास सड़कों को छोड़ दें तो एक रोड नहीं मिलेगा, जिसके किनारे कचरा नहीं दिखे। जो वीआईपी चिह्नित खास सड़कों पर नहीं रहते, उन्हें भी कचरे की सड़ांध में जीना पड़ता है तो आम शहरी की क्या ही बात करें। मैंने राजेंद्र नगर टर्मिनल के पीछे राजेंद्र नगर इलाके की तस्वीर एक उदाहरण के रूप में दिखाई है। कमोबेश, सभी अंदरूनी सड़कों के साथ कई व्यस्त सड़कों का हाल ऐसा ही दिखता है। राजेंद्र नगर में तो बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री दिवंगत सुशील कुमार मोदी भी रहते थे।
गर्मी में सूखकर फैलेगा, बारिश में फूलकर फैलेगा
पटना के मुहल्लों की गलियों में कहीं सड़क साफ दिख जाए तो गारंटी मानिए कि कोई खास वहां आसपास रहता है, वरना ऐसी तस्वीर आप उतार ही नहीं सकते। अमूमन तस्वीर कैसी होगी, यह सोचने के लिए आपको घर से निकल 100-200 या अधिकतम 500 मीटर की यात्रा करनी होगी। पैदल निकले तो सड़ांध खुद ही खींचकर प्रमाण दिखाएगी कि यहां-यहां कचरा है। यह कचरा गर्मी में सूखकर फैलता-उड़ता रहता है तो बारिश के पानी में फूलकर चप्पल-टायर के जरिए फैलता है। रही बात सड़ांध की तो पटना में कुछ वीआईपी इलाकों को छोड़कर कभी पैदल घूमने निकल कर देखें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। उन्हें पता चल जाएगा कि पैदल चलना असंभव जैसा है। हर तरफ दुर्गंध। कहीं जाम नाले में फंसे कचरे की तो कहीं सड़क पर फैले कूड़े की। यही दुर्गंध और यही कचरा पटना की पहचान है। इसी पहचान के साथ आम शहरी को बरगलाने के लिए पटना नगर निगम बीच-बीच में स्वच्छता रैंकिंग में सुधार के नाम पर मोबाइल के जरिए अच्छी प्रतिक्रिया मांगता है। मैं न देता हूं और न दे सकता हूं। आम शहरी तो नहीं ही देंगे। निगम के लोग खुद ही अपनी पीठ थपथपाने के लिए मोबाइल पर प्रतिक्रिया लेकर स्वच्छता सर्वे में 50वें नंबर के आसपास टिके रहने की जद्दोजहद करते रहे हैं, करते रहेंगे।