Bihar News में बात शिक्षा विभाग के तालिबानी फैसले की। BPSC TRE 2.0 के अभार्थियों के आंदोलन का गला दबाने की साजिश के तहत एक आदेश पारित किया गया है।
देश में हक मांगने की आजादी है। ऐसा हमारा संविधान कहता है। लेकिन हक की आवाज उठाने पर अगर आपका गला दबाया जाए तो हमें गुलाम क्यों न कहा जाए? बिहार लोक सेवा आयोग यानी बीपीएससी के एक पत्र से तो ये साफ है कि बिहार में सरकारी तंत्र के खिलाफ आवाज उठाने पर गुलामों की तरह सजा सुनाई जाएगी। BPSC TRE 2.0 के वैसे अभ्यर्थी जो सप्लीमेंट्री रिजल्ट घोषित करने की मांग कर रहे थे, उन्हें बेलगाम शिक्षा विभाग ने सीधे-सीधे धमकी दी है। शिक्षा विभाग की प्रेस विज्ञप्ति एक तरह से निरंकुश शासन का तुगलकी फरमान दिखाई दे रहा है।
शिक्षा विभाग के माध्यिक शिक्षा निदेशक की प्रेस विज्ञप्ति : तालिबानी फैसले से छात्रों को खुली धमकी
शिक्षा विभाग के माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। इस प्रेस विज्ञप्ति में लिखा गया है कि कुछ विद्यालय अध्यापक अभ्यर्थियों द्वारा बिहार लोक सेवा आयोग के TRE 2 के परिप्रेक्ष्य में पूरक परीक्षाफल प्रकाशित करने के लिए दवाब बना रहे हैं। जबकि विभाग द्वारा पूर्व में ही पूरक परीक्षाफल प्रकाशित नहीं करने का निर्णय लिया जा चुका है। वैसे अभ्यर्थी जो परीक्षाफल के लिए दवाब बना रहे हैं, उनकी पहचान कर आयोग की अगली परीक्षा से वंचित करने की कार्रवाई की जा रही है। इसलिए ऐसे अभ्यर्थी पूरक परीक्षाफल के लिए विभाग या आयोग पर दवाब बनाने की कोशिश न करे।
तालिबानी आदेश : संवैधानिक अधिकारों का चीरहरण
शिक्षा विभाग का यह तालिबानी आदेश सीधे-सीधे संवैधानिक अधिकारों का चीरहरण करने जैसा है। शिक्षक अभ्यर्थियों की मांग जायज है या नयाजय, यह एक अलग मसला है। लेकिन मांग करने वालों से परीक्षा में शामिल होने का अधिकार छीन लेना, किसी बेरहम शासन का तुगलकी फैसले जैसा है। हालांकि विभाग में ऐसे अधिकारी मौजूद हैं जिनके आगे हारकर सीएम नीतीश तक को बड़ा फैसला लेना पड़ता है। वैसे एक आईएएस अफसर से भिड़ने और तुगलकी फरमान सुनाने के बाद उन्हें भारी फजीहत भी झेलनी पड़ी थी।