Bihar News में चर्चा चाचा Pashupati Paras और Chirag Paswan की हो रही है। पटना के पार्टी दफ्तर पर दखल के लिए दंगल चल रहा है। अब आगे क्या होगा?
Chirag Paswan से सब छिन गया, गया वक्त ने पलट दी बाजी
दफ्तर पर दखल का दंगल है। इस दंगल में पहले चाचा पशुपति पारस भरी पड़े थे। केंद्र में मंत्री बने। पार्टी दफ्तर कब्जा किया। चिराग पासवान के हाथ से सब निकल गया। फिर वक्त की बाजी पलट गई। चिराग पासवान की पार्टी लोजपा रामविलास ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी ने चिराग को केंद्रीय मंत्री बना दिया। अब पटना स्थित पार्टी दफ्तर के लिए दंगल चल पड़ा है। चिराग ने यहां भी चाचा पारस को पटखनी दे दी। बिहार सरकार के भवन निर्माण विभाग ने पारस को पार्टी दफ्तर से बेदखल कर दिया है। लेकिन चाचा पारस कहां हार मानने वाले हैं। अब आरएलजेपी के अध्यक्ष पशुपति इस फैसले के खिलाफ पटना हाई कोर्ट की चौखट पर पहुंच गए हैं।
LJPR Supremo Chirag Paswan को मिला दफ्तर
पटना एयरपोर्ट के समीप पार्टी का दफ्तर है। यह स्व रामविलास पासवान को मिला था। स्व रविलास पासवान इसी दफ्तर से पार्टी चलाते थे। उनकी मौत के बाद पार्टी में टूट हुई। तब दफ्तर पर पशुपति पारस को मिल गया। पारस यहीं से पार्टी चला रहे थे और इसी दफ्तर में रहते भी थे। लेकिन 13 जून को बिहार के भवन निर्माण विभाग ने नोटिस जारी करते हुए रालोजपा कार्यालय का आवंटन रद्द कर दिया था। क्योंकि रालोजपा द्वारा टैक्स का भुगतान नहीं किया गया था। विभाग ने अब पार्टी दफ्तर चिराग पासवान की पार्टी लोजपा रामविलास को आवंटित कर दिया है। विभाग की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि लोजपा रामविलास के प्रदेश अध्यक्ष ने 4 जुलाई को पार्टी दफ्तर के लिए आवास मुहैया कराने का अनुरोध किया था। चिराग पासवान के लिए यह एक बड़ी जीत है। पार्टी से लेकर पार्टी दफ्तर तक पर कब्जा होने के बावजूद चिराग ने वापसी की और फिर से गेंद अपने पाले में कर लिया है।
Pashupati Kumar Paras पहुंच गए High Court, क्या है दलील
पशुपति कुमार पारस से सबकुछ छिन चुका है। बचा था पार्टी दफ्तर, उसे भी चिराग पासवान की पार्टी को आवंटित कर दिया गया है। अब कार्यालय बचाने के लिए पशुपति कुमार पारस की पार्टी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस मामले में पटना हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई गई है। आरएलजेपी के मीडिया प्रभारी सह कोषाध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा ने मीडिया को बताया कि 8 जुलाई को ही हमारी पार्टी के उपाध्यक्ष अम्बिका प्रसाद बिनु की ओर से इस मामले में याचिका दायर की गई है। न्यायालय ने इसे स्वीकार भी कर लिया है। इसका टोकन नंबर 14704 है। उन्होंने आरोप लगाया कि भवन निर्माण विभाग की ओर से कहीं ना कहीं दबाव में आकर इस तरह का लेटर जारी किया गया है।
Court में क्यों कमजोर पड़ेंगे पशुपति पारस
भवन निर्माण विभाग के फैसले के खिलाफ भले ही पशुपति पारस पटना हाई कोर्ट पहुंच गए हैं। लेकिन यहां उनकी दलील कमजोर पड़ सकती है। क्योंकि विभाग ने जो तथ्य सामने रखे हैं, वह पशुपति पारस के खिलाफ हैं। विभाग के अनुसार, राजनीतिक दलों को 2 साल के लिए कार्यालय चलाने के लिए भवन आवंटित किया जाता है। अगर इसे बढ़ाना है तो पार्टी को हर साल इसे रिन्यू कराना होता है। इसके बदले तय शुल्क जमा करनी होती है। पशुपति पारस की ओर से व्हीलर रोड वाले दफ्तर को एक बार भी रिन्यू नहीं कराया गया है। इस दफ्तर का नवीनीकरण साल 2019 से लंबित है। ऐसे में भवन निर्माण विभाग कोर्ट में नियमों का हवाला देकर पशुपति पारस की दलील को आसानी से खारिज करवा सकता है।