Bihar Police की खटारा जिप्सी के लिए हार्डिंग रोड रिजर्व! बिहार का अटल पथ बनाया गया है अजूबा

Citizen Journalist नरेश अग्रवाल ने यह तस्वीरें और सामग्री उपलब्ध कराई है कि Bihar Police कैसे चालान की वसूली कर रही है और इसके लिए स्पीड लिमिट का सरकारी प्रावधान क्या रखा गया है?
पेड़ की आड़ में लिखी है स्पीड लिमिट। आगे खड़ी रहती है ओवर स्पीड चालान करने के लिए पुलिस। फोटो- नरेश अग्रवाल

Bihar News : जनता के शोषण की नई योजना से पुलिस को फायदा

अगस्त में बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने अपनी कैबिनेट बैठक (Bihar Cabinet) में परिवहन विभाग को एक और अधिकार दिया कि वह नेशनल हाइवे (National Highway) में भी गाड़ियों की गति सीमा तय करे। बहुत आश्चर्य होता है, जब इस तरह के अवैज्ञानिक विभाग को ऐसा काम दिया जाता है। यकीन नहीं है तो मेरी दी गई यह तस्वीर देखिए। हार्डिंग रोड की तस्वीर है। बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) के बगल से हज भवन की ओर जाते समय गर्दनीबाग थाना वाले रेलवे फाटक के पास की तस्वीर है। स्पीड लिमिट (Vehicle Speed Limit) 30 की रखी गई है। अब, 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तो बिहार पुलिस (Bihar Police) की खटारा जीप-जिप्सी ही चल सकती है। इससे ज्यादा गति में तो ई-रिक्शा चलता है।

सड़क पर पुलिस रहे या नहीं, इस तरह से पड़ा रहता है बैरिकेड। फोटो- नरेश अग्रवाल

और, कभी 30 किलोमीटर की गति से कार चलाकर देखा है परिवहन विभाग के अफसरों ने? सरकार ने यहां तीस किलोमीटर की गति निर्धारित कर दी और बिहार पुलिस को मिली स्पीड जांचने वाली आधुनिक गाड़ी बाकायदा यहां ड्यूटी पर नजर आ जाती है। 30 से ज्यादा स्पीड की सरकारी छोड़, कोई भी गाड़ी जहां इसके कैमरे की जद में आई तो उसका फाइन भेज दिया जाता है। कोई रोक-टोक नहीं, सीधे फाइन।

अटल पथ पर 80 से 40 अचानक कर सकते हैं?

अटल पथ को रेडलाइट फ्री तो बनाया गया, लेकिन ग्रिल तोड़कर रोड पार करने वालों के कारण स्पीड लिमिट बोर्ड बदलता है। फोटो- नरेश अग्रवाल

राजधानी में सबसे सहज गाड़ी चलाने के लिए बनाई गई इकलौती सड़क अटल पथ पर भी वाहनों को चलाना कितना बड़ा टास्क है, समझिए। इस सड़क पर तेज गति के कारण हादसों की खबरें कई बार सामने आ चुकी हैं, लेकिन 90 प्रतिशत मामलों में अचानक सड़क पार करने वालों के कारण दुर्घटना हुई है। सड़क पार करने के लिए दो जगह फुट ओवर ब्रिज बना है, लेकिन लोग इसकी आदत नहीं डाल रहे हैं। इतनी लंबी सड़क पर कम-से-कम पांच जगह फुटओवर ब्रिज और बनना चाहिए, भले इस तरह लाखों के वारे—न्यारे कर न बनाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी जो फुटओवर ब्रिज बने हैं, उनके पास लिफ्ट भी लगाया गया है जो मंत्री के हाथों उद्घाटन के दिन ही एक बार चला था। खैर, यह तो सरकारी लूटखसोट का एक छोटा-सा उदाहरण है। मुख्य मुद्दे पर आऊं तो पैदल पार करने वालों को रोकने की जिम्मेदारी सरकार की है। उसकी जगह सरकार ने यहां गति रोकने का अवैज्ञानिक फॉर्मूला लगा दिया है। कहीं 80 की स्पीड निर्धारित है तो कहीं 40 की गति। जब आप 80 की स्पीड लिमिट देख 60-70 की गति से भी गाड़ी भगा रहे होंगे तो कुछ सेकंड बाद ही आपको 40 की गति नियंत्रित करने वाला बोर्ड दिखेगा। और, चौंकाने वाली बात नहीं कि ठीक वहीं पर गति जांचने वाले कैमरा-संपन्न पुलिसिया गाड़ी आपके नाम से चालान जारी करने के लिए मुस्तैद नजर आएगी। बिहार की भाषा में इसे धुरफंदी कहते हैं। सरकार का एक विभाग पुलिस के लिए धुरफंदी का रास्ता बनाता है और पिसती है बेचारी जनता।

मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री या बिहार के पुलिस महानिदेशक आदि की गाड़ियां तो इन रास्तों से 30-40 की गति में तो गुजरती नही हैं, लेकिन उन गाड़ियों का फाइन होगा नहीं। बिहार विधानसभा और विधान परिषद् में बैठे सत्ता और विपक्ष के नेताओं और पुलिस की गाड़ियों का भी फाइन शायद ही कटता हो। तो, उन्हें चिंता होना वाजिब भी नहीं। मतलब, जनता परेशान रहे। भाड़ में जाए।

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