Dowry Death : कोर्ट में हर दिन दहेज केस देख रहे लीगल एक्सपर्ट बता रहे- जुर्म की दस्तक कब सुनाई देती है

रंजन सिन्हा, पटना

Dowry Death : इस खबर में एक वास्तविक घटनाक्रम के आधार पर विधि विशेषज्ञों से समझने का प्रयास किया गया है कि दहेज के लिए हत्याएं कब होती हैं? समझना यही है कि जुर्म की दस्तक कई बार सुनाई देती है, लेकिन अक्सर इसकी अनदेखी हो जाती है।

Bihar News : जहां हर दिन ऐसी तीन हत्याएं, वहां कैसे बचना है- जानें

कई मामले पहले से थे, लेकिन यह बहुत ताजा मामला है। बिहार के सुपौल में 19 सितंबर 2024 की वारदात। गुड़िया की शादी 2018 में हुई थी और अब वह इस दुनिया में नहीं है। मनमाफिक दहेज लेने के बाद 2018 में शंकर साह ने 21 साल की गुड़िया से शादी की। शादी के कुछ ही दिन बाद नई डिमांड आई, ढाई लाख नकद के साथ चारपहिया गाड़ी दो। गुड़िया के मायके वाले सक्षम नहीं थे। मायके की मनाही के बाद ससुराल में पति के जुल्म सहना गुड़िया की किस्मत का हिस्सा हो गया। घर में बेटी के जन्म लेने के बावजूद पति नहीं सुधरा। ससुर की बेटी पर उसका जुल्म बढ़ता ही गया। मांग भी ढाई लाख से चार लाख हो गई और चारपहिया का मॉडल भी बदल गया। इस मांग पर सितम जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो वह मायके लौट गई। आठ महीने पहले दूसरी बेटी हुई। वह जुल्म सहने के लिए ससुराल जाने को तैयार नहीं हुई। आठ महीने से ज्यादा गुजर गए तो सास समझाने आई और इसी जन्माष्टमी पर मायके वालों ने गुड़िया को विदा कर दिया। अब वह दुनिया से विदा चुकी है। ससुराल से सास को छोड़कर सारे लोग फरार हो गए।

जुर्म की दस्तक को आप भी समझें, दूसरों को समझाएं… बेटी बचाएं

इस वास्तविक घटनाक्रम में जुर्म की दस्तक कितनी बार आप महसूस कर सके? अगर नहीं समझ सके तो आप अपने आसपास मंडरा रहे ऐसे खतरों को शायद ही समझ पाएं। जब दहेज की मांग रखी गई, वह इस मौत की पहली दस्तक थी। खैर, उसे परंपरा मान भी लें तो जब शादी के बाद दहेज के टॉप-अप की मांग आई, यह असल और सबसे बड़ी दस्तक थी। शादी बचाने की जगह उसी समय कानून का सहारा लिया जाना चाहिए था। इसके बाद जितनी बार दहेज के नाम पर मारपीट की गई होगी, वह दस्तक सिर्फ गुड़िया को सुनाई दी होगी। उसने जब भी मायके वालों को यह सब बताया होगा, हर बार उन्हें इस अंतिम जुर्म की दस्तक सुनाई दी होगी। उसे अंदाजा लग गया होगा, तभी उसने मायके की शरण ली। उसका मायके आकर टिक जाना, लेकिन लालची पति को नहीं छोड़ना एक गलती थी। उन दस्तकों को नहीं समझते हुए जन्माष्टमी पर उसे ससुराल भेजना अंतिम गलती थी। आठ महीने का जुल्म उसे एक साथ दिया गया होगा, तभी वह मरी मिली। जिस परिवार ने जन्माष्टमी पर गुड़िया को ससुराल भेजने का फैसला लिया होगा, उसके गम-गुस्से और पछतावे का अंदाजा हम-आप कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। लेकिन, जुर्म की दस्तक को समझ तो सकते हैं ताकि अपने आसपास ऐसा कुछ हो तो सचेत हो सकें, कर सकें।

घटना से पहले 90% केस में संकेत मिलता है

दहेज के नाम पर होने वाली हत्याओं में अधिकतम 10 प्रतिशत ही ऐसे मामले हैं, जिनमें मायके वाले कहते हैं कि उन्हें उनकी बेटी ने किसी जुल्म की सूचना नहीं दी थी। दहेज के मामलों में कानूनी प्रावधान के तहत सरकारी वकील नि:शुल्क विवाहिता की तरफ से केस लड़ते हैं और ऐसे ही मामलों को देख रहे अधिवक्ताओं से बातचीत में यह तथ्य निकलता है कि दहेज के लिए कोई सीधे पहली बार में विवाहिता को मार डालता है, ऐसा नहीं हैं। कभी-कभी अचानक ऐसी घटना होती है। वैसे, ग्रामीण इलाकों के केस में कई बार ऐसे संकेत मिलते हैं, जिसपर ध्यान दिया जाए तो आधे से ज्यादा मामलों को रोका जा सकता है। विवाहिता के ससुराल वाले उसे मानसिक या शारीरिक तौर पर दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं। यह सामान्य टोकाटोकी या टिप्पणी नहीं होती। इसकी गंभीरता को समझना होता है। कई बार मांग पूरी नहीं होने पर विवाहिता के साथ गंभीर मारपीट होती है। यह हत्या जैसे जुर्म की दस्तक है।

लोभी के मुंह में खून लगने दिया तो बेटी की जिंदगी पर आफत पक्की

दस्तक को नहीं समझते हुए महिला के मायके वाले दहेजलोभियों की मांगों को पूरा कर देते हैं। यह मुंह में खून लगने जैसी बात हो जाती है। उसके बाद सबकुछ सामान्य शायद ही हो पाता है। मांग फिर से आती है और फिर प्रताड़ना का दौर शुरू होता है, ताकि अगली खेप आ सके। इसी क्रम में मांग पूरी नहीं होने पर पीटते-पीटते हत्या को अंजाम दिया जाता है। जो तेज होते हैं, वह बचने के लिए विवाहिता को जलाने, फांसी पर लटकाकर सुसाइड दिखाने, चुपके से मारकर गायब करने, जहर खिलाकर आत्महत्या दिखाने जैसे हथकंडे अपनाते हैं। लेकिन, यह सब तभी होता है जब उन संकेतों को विवाहिता या मायके वाले न समझें या नजरअंदाज कर दें या किसी तरह शादी चलाने के लिए बेटी पर ही दबाव बनाएं। मायका पक्ष प्रताड़ना पर कानून का रुख करे तो ऐसे मामलों को रोका जा सकता है।

बिहार में पैसों के साथ गाड़ी की मांग, अब जमीन का भी झंझट बढ़ा

गया व्यवहार न्यायालय के सहायक लोक अभियोजक राजीव नारायण कहते हैं- “दहेज हत्या के अधिकतर मामलों में ससुराल पक्ष की ओर से विवाहिता पर पैसे और वाहन की मांग के लिए दबाव बनाया जाता है। ऐसे मामले अधिकतर निम्न व मध्यम आय वर्ग के परिवारों में देखने को मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में मायके से जमीन लेने की परंपरा भी दिखाई दे रही है। जमीन बेचकर बेटी की शादी करने वाले परिवारों से शेष बची जमीन में से हिस्सा मांगने कहा जाता है। कानून समझाया जाता है। ऐसे मामले पहले नहीं थे, लेकिन अब मध्यम आय वर्ग और उच्च वर्ग में इस तरह की मांग सामने आ रही है। ऐसी मांगों की अनदेखी पर निम्न व मध्यम आय वर्ग की विवाहिताएं पीट-पीट कर मारी जाती हैं। संपन्न परिवारों में जलाकर या मारकर गायब करने या हादसे का शिकार दिखाने का केस आता है।“  

आधे से ज्यादा मामलों में शव का नहीं चलता पता

वरीय अधिवक्ता राजीव अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि दहेज हत्या के सामने आने वाले आधे से अधिक मामलों में विवाहिता की हत्या कर साक्ष्य मिटाने के उद्देश्य से शव को आननफानन में जला दिया जाता है या उसे गायब कर दिया जाता है। पोस्टमार्टम नहीं हो पाने की वजह से कई बार दोषी इसका लाभ उठा लेते हैं। इसके बाद विवाहिता की हत्या का सबसे कॉमन तरीका फांसी। इसके बाद जहर खिलाए जाने के मामले सामने आते हैं।

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