Delhi Election : दिल्ली चुनाव परिणाम से मिली बड़ी सीख; वह 5 गलतियां, जिससे अरविंद केजरीवाल हारे

शिशिर कुमार सिन्हा

by Republican Desk
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Delhi Election : सदी में पहली बार, पूरे 27 साल बाद दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी जीत सकी। भाजपा जीती तो सही, लेकिन यह उसे भी बड़ी आम आदमी पार्टी की हार है। जिन राज्यों में आगे चुनाव है, वहां भाजपा के सामने खड़े होने वाले दलों को 5 बातें गांठ बांध लेनी चाहिए।

Delhi Result : हवा का रुख और पानी का गंध नहीं पहचान सके केजरीवाल

दिल्ली जाना होता रहा है। दिल्ली वालों का मिजाज भी अरसे से जानता रहा हूं। तब की दिल्ली भी देखी, जब शीला दीक्षित ने आकर इसे बदल डाला। उससे पहले, सीएम बदलने वाली भाजपा की दिल्ली को भी देख चुका था। फिर अरविंद केजरीवाल वाली भी दिल्ली देखी। जब शीला दीक्षित आई थीं, तो कारण कुछ और था। खूब टिकीं, लेकिन एक ही ढर्रे पर दिल्ली नहीं चलती है और न चलाई जा सकती है। सो, वह हट गईं। अब अरविंद केजरीवाल उसी का शिकार हुए। हवा कर रुख और पानी का गंध नहीं पहचान सके।

Delhi Election : केजरीवाल को नकार देगी दिल्ली, यह उन्हें समझ लेना था पहले

अन्ना हजारे के आंदोलन के सहारे राजनीति में आने वाले अरविंद केजरीवाल असल में जड़ से हटे तो हटे, जमीन से भी दूर हो गए। अगर वह जमीन पर भी रहते तो अंदाज कर सकते थे कि उनकी खुद की सीट पर खतरा है। और, जब आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा की सीट पर खतरा वह खुद आंक लेते तो शायद समय पर कुछ कर भी लेते। शायद यह हश्र नहीं होता। आसमान से गिरकर खजूर पर तो जरूर अटकते। जमीन पर नहीं पटकाते। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 62 से सीधे 22 पर नहीं गिर पड़ते।

गलती 1 : छूट गई जमीन

आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल को आत्मविश्वास ले डूबा। वह हवा में ही रह गए। जमीन पर रहने वाले उनके विधायकों को अंदाजा था कि आम आदमी का मूड बदल रहा है। आम आदमी पार्टी के आठ विधायक चुनाव के ठीक पहले भाजपा में गए तो यह संकेत ही था। उस संकेत को समझने की जगह केजरीवाल इसमें भाजपा की चाल देखते-समझाते रहे।
सीख- राजनीति भी करनी हो, तब भी बात की तह तक जाना चाहिए। जमीन छूटी तो यही होगा।

गलती 2 : भ्रष्टाचार में फंसे

छवि खराब होती गई और वह दोष मढ़ने के अलावा कुछ नहीं कर सके। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया- यह आम आदमी पार्टी के सबसे खास चेहरा हैं। दोनों जेल गए। इसके बाद बड़बोले संजय सिंह भी जेल में रहे। जेल जाने के बाद छवि बचाने की कोशिश की जगह इसके लिए भाजपा को दोषी बताते रहे।
सीख- अनपढ़ और जातिवादी वोटर को उल्लू बनाया जा सकता है, पढ़े-समझदारों को नहीं।

गलती 3 : रंग बदल लिया

अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्म हुआ। आम आदमी पार्टी नाम रखा। सादा जीवन उच्च विचार का मापदंड लेकर राजनीति में आए। लेकिन, समय के साथ सब बदलते गए। जिस वीआईपी कल्चर का प्रतिकार करते हुए राजनीति में लोगों ने सिर आंखों पर बैठाया, उसी से पलट गए। वीआईपी नहीं हैं, आम आदमी ही हैं- यह बताने की जगह भाजपा को घेरते रह गए केजरीवाल।
सीख- जो जिस रूप के कारण अपनाया जाता है, वह रंग बदले तो उसे लोग अस्वीकार करते हैं।

गलती 4 : दांव नहीं बदला

एक ही तरह की गेंद पर एक बल्लेबाज को हर बार आउट नहीं किया जा सकता। उसी तरह एक ही तरह के ऑफर पर हर बार वोटर को नहीं रिझाया जा सकता है, कुछ नया और कुछ अलग लाना पड़ता है। खासकर तब, जब सभी वही ऑफर चला रहे हों। पहली बार प्रदर्शन और फिर दो बार रेवड़ियों के नाम पर सत्ता मिली। अब तो सब वही बांट रहे- यह देखकर भी केजरीवाल ने कुछ नया प्लान नहीं लाया।
सीख- हमेशा एक दांव नहीं चलता है। सामने वाले को देखकर पैंतरा बदलना पड़ता है। नया सोचना पड़ता है।

गलती 5 : प्रयास नहीं दिखा

दिल्ली में ज्यादातर आबादी उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब के लोगों की है। जो लोग यहां के वोटर बन चुके हैं, उन्हें फ्री देने वाले तो सब हैं, लेकिन साफ यमुना दिखाने वाला कोई नहीं था। दशकों से इसका इंतजार था। केजरीवाल ने इसे शुरू से एजेंडे में रखा और पूर्ण बहुमत की 10 साल सरकार चलाने के बाद भी इसके लिए कुछ नहीं कर सके। वक्त गुजर गया तो हरियाणा की भाजपा सरकार पर आरोप मढ़ने लगे।
सीख- सबसे बड़े मुद्दे पर काम करना चाहिए। समाधान हो या नहीं, लेकिन इसका प्रयास दिखना चाहिए।

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