Dowry Case : दहेज हत्या के नाम जेल में रहा पति, समाज में मुंह छिपाता रहा परिवार… महिला जी रही थी अपनी जिंदगी

शिशिर कुमार सिन्हा, पटना

Dowry Case : नौ दिसंबर 2024 को दहेज प्रताड़ना के केस से तंग इंजीनियर अतुल सुभाष ने जान दे दी तो कई दिनों तक इसपर विमर्श हुआ, लेकिन अब मामला ठंडा पड़ गया लगता है। रिपब्लिकन न्यूज़ ‘दहेज हत्या’ करने वालों के खिलाफ खड़ा है, लेकिन कुछ खबरें हक की आवाज पर चोट करती हैं। पढ़िए इसे…

दहेज के नाम पर बलि चढ़ रही महिलाओं को बचाने की रिपब्लिकन न्यूज़ की मुहिम के बीच ऐसी खबर आ रही है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हम आंख बंद कर पत्रकारिता नहीं करते, इसलिए पढ़िए कानून की आंखें खोलने वाली यह कहानी। फोटो- RepublicanNews.in

Dowry System : कानून की आंखों पर लगी पट्टी हटा रही यह खबर

भारत में कानून के प्रतीकात्मक न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हट चुकी है। पिछले महीने पद छोड़ने से पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर न्याय की देवी (Indian Kanoon Goddess of Justice) की मूर्ति की आंखों पर लगी काली पट्टी हटा दी गई और उनके हाथ में संविधान का प्रतीक दिया गया। लेकिन, बेगलुरु में दहेज प्रताड़ना के कानूनी मुकदमे से तंग आकर जान देने वाले बिहार के अतुल सुभाष (Atul Subhash Case) के केस ने बहस छेड़ दी कि क्या सचमुच कानून अंधा नहीं है? अब बिहार में ताजा-ताजा एक मामला आया है, जहां दहेज हत्या के नाम पर अपने पति की सामाजिक प्रतिष्ठा और सामान्य जीवन की बलि लेने वाली महिला दूसरी जगह हंसी-खुशी अपनी जिंदगी जीती हुई मिली। ऐसी महिला पहली बार नहीं मिली है, लेकिन ताजा बहस के बीच आई यह खबर मायने रखती है।

Dowry Prohibition Act 1961 : कानून के दुरुपयोग की मिसाल आ रही सामने

रिपब्लिकन न्यूज़ (RepublicanNews.in) लगातार दहेज हत्या के खिलाफ मुहिम चला रहा है। कानून में दहेज मौत है, जिसे दहेज हत्या के रूप में चिह्नित और व्याख्यायित करने के लिए हम आवाज बुलंद कर रहे हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि पत्रकारिता करते हुए हम अपनी आंखों पर पट्टी बांध लें। दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) का दुरुपयोग अतुल सुभाष मामले में भी सामने आया है, लेकिन कहने वाले यह कह भी कहने से नहीं हिचक रहे कि उसने आत्महत्या कर अपनी आवाज खुद खत्म कर ली। उसे लड़ना चाहिए। यह खबर उन जिंदा लोगों की है, जो दहेज निषेध अधिनियम 1961 के दुरुपयोग के कारण तिल-तिल मर रहे हैं और जिन्होंने इनकी बलि ली- वह मौज में मिली है।

Love Marriage करने वाली सुधा शादी के एक साल बाद गायब, दहेज हत्या का केस

ताजा मामला बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा का है। नालंदा के नगरनौसा थाना क्षेत्र में चौरासी गांव का रहने वाला कुंदन कुमार चार महीने जेल की सजा काटकर निकला तो समाज में उसके परिवार को हेय दृष्टि से देखा जा रहा था। कुंदन के साथ ही उसके पिता युगल पासवान के परिवार के कुल सात लोगों पर दहेज हत्या का केस चल रहा था। कुंदर और उसके पिता को जेल में रहना पड़ा। जेल से निकलने के बाद कुंदन परदेस चला गया, लेकिन थाने का चक्कर खत्म नहीं हुआ। अब शायद हो, लेकिन उसमें भी कितना समय लगेगा- पता नहीं! कुंदन ने 2015 में पटना के गौरीचक थाना क्षेत्र के अंडारी गांव निवासी हरिश्चंद्र पासवान की बेटी सुधा कुमारी के साथ प्रेम विवाह किया था। लगभग एक साल सुधा उसके साथ रही, फिर गायब हो गई। बात-पंचायत सब होने के बाद हरिश्चंद्र पासवान ने कुंदन समेत उसके परिवार के सात लोगों पर दहेज हत्या का केस कर दिया।

हिलसा व्यवहार न्यायालय में एडीजे-4 की अदालत में मामला विचाराधीन है। चार महीने जेल काटकर कुंदन परदेस में है। बताया जा रहा है कि हरिश्चंद्र पासवान को पता चल गया था कि उनकी बेटी जिंदा है, लेकिन उन्होंने केस नहीं हटाया। नालंदा पुलिस के दस्तावेजों में मृत सुधा कुमारी दिसंबर 2024 के तीसरे हफ्ते में पूर्णिया के धमदाहा से बरामद की गई है। वह नए पति के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही थी। इस पति से उसका एक बच्चा भी है, जो अब पांच साल का हो चुका है। मतलब, दहेज हत्या के केस के कुछ समय बाद ही वह गर्भवती हुई होगी। मतलब, दहेज हत्या का केस दर्ज करने के पहले जरूरी जांच नहीं की गई। कानून ने भी दहेज निषेध अधिनियम 1961 के नाम पर आंखें बंद कर रखी थी। अब सुधा को सामने पाकर भी क्या कानून कुंदन और उसके परिजनों की सामाजिक प्रतिष्ठा वापस कर सकता है? क्या जेल में बिताए कुंदन के दिन वापस कर सकता है?

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Dowry Meaning : दहेज हत्या के नाम पर ऐसा पहली बार नहीं हुआ, फिर भी दुरुपयोग

दहेज हत्या के केस में कानूनविद् शव की बरामदगी और उसके पोस्टमार्टम को महत्वपूर्ण मानते हैं। पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता किशोर कुणाल कहते हैं कि “दहेज प्रताड़ना के केस में प्रमाण मांगा जाता है, लेकिन दहेज हत्या के केस में इसकी जरूरत और ज्यादा है। पुलिस को कम-से-कम शव की बरामदगी करनी चाहिए। शव बरामद नहीं होने पर बाकी केस में मरा नहीं माना जाता है, लेकिन दहेज के केस में ऐसा मान लिया जाता है। कहीं-न-कहीं इसी के कारण निर्दोष भी सजा पा लेते हैं। पुलिस जानकार नहीं है। घटनास्थल पर तो दारोगा जाते हैं। जांच अधिकारी गलत दिशा देते हैं और कानून उसी हिसाब से आगे बढ़ता है। इस कानून की रूपरेखा में बदलाव जरूरी है। आरोपी का पक्ष सुना ही नहीं जाता है और अनुसंधान करने वाले इसे रिकॉर्ड में नहीं लाया जाता है। अगर जांच अधिकारी लाश नहीं मिलने के आधार पर डायरी में लिखे कि यह संभावना-आशंका हो सकती है तो निर्दोष नहीं फंसेंगे।” कानूनविद् जिन गड़बड़ियों की बात करते हैं, उनमें से एक यही- शव की बरामदगी को लेकर अस्पष्टता है। इस अस्पष्टता का प्रमाण बार-बार सामने आता रहा है।

अक्टूबर 2024 में भोजपुर में एक ऐसी ही मृत महिला को पुलिस ने चार साल बाद जिंदा बरामद किया था। महिला नए पति और उसके साथ हुए दो बच्चों के साथ हंसी-खुशी जिंदगी जी रही थी। उसे पता था कि उसके पिता ने उसके पहले पति को दहेज के नाम पर उसकी हत्या में फंसा दिया है। न केवल फंसाया, बल्कि उसके पहले पति और परिवार वाले चार साल से जेल में थे। इतना कुछ वह दबाए बैठी रही। वजह पूछने पर उसने कहा कि पहला पति उसे प्रताड़ित करता था। उससे बचकर मायके गई तो मां के निधन के बाद पिता ने उससे शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास किया। तंग आकर वह आत्महत्या करने जा रही थी, तो जिसने बचाया- उसी से शादी कर ली। लेकिन, क्या इस कहानी से दहेज के नाम पर उसके पहले पति और परिवार को सजा देने वाले कोर्ट या इस बात की पुष्टि नहीं करने वाली पुलिस की जिम्मेदारी कहीं नहीं बनती है?

False Dowry Death Case : ऐसे मजाक में भी दर्ज होता है दहेज हत्या केस!

दहेज निषेध अधिनियम 1961 के दुरुपयोग की एक नहीं, दर्जनों कहानियां हर महीने सामने आती हैं। एक यह भी है, जिसे आप मजाक से ज्यादा क्या ही मानेंगे! 29 जुलाई 2024 को पटना के धनरुआ थाने में एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई। तेल्हाड़ा निवासी रिकम प्रसाद ने अपने दामाद, बेटी के सास-ससुर और ननद के खिलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज कराया। अगस्त के पहले हफ्ते में वह ‘मृत बेटी’ रुबिका कुमारी खुद सामने आयी। उसने बताया कि सास-ससुर की आपसी लड़ाई से तंग आकर वह अपनी मौसी के घर चली गई थी, लेकिन जब दहेज हत्या का केस किए जाने की जानकारी मिली तो लौट आई। रिपब्लिकन न्यूज़ इस केस में रुबिका के कदम की सराहना करता है, क्योंकि इसके कारण निर्दोष परिवार पिसने से बच गया।

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Indian Kanoon : उलटा केस किया तो पुलिस ने ढूंढ़ निकाली ‘मृत महिला’

कानून अगर दहेज निषेध अधिनियम 1961 को लेकर संजीदगी दिखाए और निर्दोष-दोषी को पहचानने की कोशिश करे तो कानून के दुरुपयोग पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 2024 में सामने आया था। गोंडा जिले में तीन साल पहले एक विवाहिता कविता की दहेज मौत का केस दर्ज हुआ था। चार साल साथ रही पत्नी कविता के गायब होने के बाद तीन साल से पति विनय कुमार और बाकी ससुराली यह केस झेल रहे थे। लाश बरामद नहीं हुई थी। दहेज मौत का केस झेल रहे विनय के परिवार ने विवाहिता के परिजनों पर एक केस दर्ज करा दिया कि उन लोगों ने उनकी पत्नी कविता को जबरन कब्जे में रखा है। मामला हाईकोर्ट पहुंचा और सख्ती हुई तो पुलिस ने कविता को ढूंढ़ निकाला। महिला ने बताया कि वह पति को छोड़ अपने प्रेमी के साथ तीन साल से लखनऊ में रह रही थी।

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