Happy Birthday : शरीर त्यागने के 1555 दिन बाद भी वह पुण्यात्मा अपने जन्मदिन पर कर रही समाजसेवा; जयंती पर जानिए जैनेंद्र ज्योति के बारे में

रिपब्लिकन न्यूज़, पटना

by Republican Desk
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Happy Birthday : एक-दो दिन नहीं, पूरे 1555 दिन हो गए, जब समाजसेवी पत्रकार और रक्तवीर जैनेंद्र ज्योति ने नश्वर शरीर का त्याग किया था। वह पुण्यात्मा आज भी समाजसेवा कर रही है। अपने श्राद्ध से लेकर पिछले चार वर्षों से पुण्यतिथि पर अपने चाहने वालों से रक्तदान करवाते हुए। और, जन्मदिन पर गरीब-गुरबों के बीच सच्ची सेवा से।

स्व. जैनेंद्र ज्योति के जन्मदिन पर 15 दिसंबर को हर साल गरीबों के बीच विभिन्न शहरों में भोजन कराया जाता है। पटना में इस मौके पर केक काटकर बच्चे हीरू भइया का जन्मदिन भी मनाते हैं। फोटो- RepublicanNews.in

Jainendra Jyoti : न जानें कितने शरीर में लहू बनकर जिंदा है हीरा

यह खबर नहीं है। संवेदनाओं को शब्द देने का प्रयास है। वह शब्द, जो संवेदना के वेग में निकल नहीं पा रहे। 2019 में अपने जीवन का सबसे शानदार और हमारे जीवन का सबसे यादगार जन्मदिन मनाया था हमारे हीरा ने। नाम से हीरा, कर्म से हीरा। जैनेंद्र ज्योति की शख्सियत ही ऐसी थी। सामाजिक सरोकार के साथ जिम्मेदार पत्रकारिता करते हुए महज 29 साल की उम्र में 49 बार रक्तदान कर आम लोगों के बीच हमेशा उपलब्ध रहने वाले जैनेंद्र ज्योति को अपने नश्वर शरीर का त्याग किए हुए 1555 दिन हो गए। इतने दिनों में लोग दिवंगत भारत रत्न जैसी शख्सियतों को भूल जाते हैं या जयंती-पुण्यतिथि पर औपचारिकतावश याद करते हैं। लेकिन, जैनेंद्र ज्योति की आत्मा खुद ही किसी को भूलने नहीं दे रही है।

अपने श्राद्ध में सामाजिक भोज नहीं कराते हुए उस शख्सियत ने घर वालों के मन में एक ही विचार दिया- “अपने हैं तो मेरे नाम से रक्तदान कीजिए और मेरे लिए कुछ करना है तो वंचित-गरीबों को भोजन कराइए।” यही हुआ। फिर 2020 में जब वह खुद जन्मदिन मनाने के लिए हमारे बीच नहीं थे, तब संबल देते हुए विचार दिया- “मेरे जन्मदिन पर मातम मत मनाइए, गरीब बच्चों के बीच खुशियां बांटिए, भूखे को भोजन कराइए, जरूरतमंदों की सहायता कीजिए।” यही हुआ। उसके बाद 2021 से अब तक चार बार पुण्यतिथि पर 240 से ज्यादा लोगों ने जैनेंद्र ज्योति को रक्तदान के जरिए श्रद्धांजलि दी। और, पिछले चार साल की तरह इस बार भी 15 दिसंबर को स्वर्गीय जैनेंद्र ज्योति ‘हीरा’ के जन्मदिन पर मातम नहीं होगा, गरीब बच्चों के बीच पुण्यात्मा खुशियां बांटते दिखेंगे। बस, दिखेंगे उन्हें- जिनकी आंखों ने इन 1555 दिनों में कभी उस शख्सियत को नहीं भुलाया।

Maa Blood Centre : रक्तदान के जरिए श्रद्धांजलि की परंपरा स्थापित हुई

मां ब्लड बैंक के आकार लेने से पहले मां वैष्णो देवी सेवा समिति के एक आयोजन में रक्तदान के लिए सम्मानित किए गए स्व. जैनेंद्र ज्योति।

रिपब्लिकन न्यूज़ के संस्थापकों में रहे स्व. जैनेंद्र ज्योति ने अपने जीवनकाल में पत्रकारिता से ज्यादा समय समाजसेवा को दिया था। उनके सबसे बड़े भाई और ‘अमर उजाला’ के बिहार एडिटर कुमार जितेंद्र ज्योति ने 22 सितंबर 2024 को मां ब्लड सेंटर में स्व. जैनेंद्र ज्योति की पुण्यतिथि पर आयोजित रक्तदान शिविर में नम आंखों के साथ कुछ यादें शेयर की थी- “हमारी तकदीर मर गई, तुम्हारी तस्वीर भी जिंदा है… ऐसा हीरा था हमारा भाई। जब एक पैथोलॉजिस्ट और एक अस्पताल निदेशक ने उसकी हत्या की और समाज-सरकार ने इसपर संवेदनशीलता नहीं दिखाई तो मैंने और मेरे छोटे भाई जीवन ज्योति ने सामाजिक कार्यों से खुद को विमुख करने की कोशिश की। लेकिन, जैसे कोई टेलीपैथी हुई। जैसे, वह खुद आकर कह गया हो कि मेरा काम चलता रहेगा, मैं तो न जानें कितने शरीर में लहू बनकर जिंदा हूं। मैं मरा नहीं हूं। तुमलोग भी मत मारना। और, हम लोगों ने श्राद्ध पर भोज नहीं करने का फैसला किया। बेगूसराय के बखरी स्थित पैतृक आवास पर रक्तदान शिविर लगा। घर-परिवार के लोगों ने भी रक्तदान से जैनेंद्र को श्रद्धांजलि दी और जानने वालों की तो खैर कतार ही लगी थी। उसके बाद हर साल 22 सितंबर को रक्तदान से श्रद्धांजिल की परंपरा स्थापित हो गई। पटना में मां ब्लड सेंटर की स्थापना में महती भूमिका निभाने वाले जैनेंद्र को हर साल श्रद्धांजलि दी जा रही है।”

Blood Donation : जांच में खून निकला तो बेहोश हुए, फिर प्राण गया मगर प्रण नहीं छूटा

समाजसेवा का कोई मौका जैनेंद्र ज्योति नहीं छोड़ते थे। यह तस्वीर तख्त श्री हरिमंदिरजी पटना साहिब की है।

मुझे याद आया कि कैसे जब वह 14-15 साल का रहा होगा तो जांच के लिए खून निकाले जाने के बाद मेरी गोद में बेहोश हो गया था। उसके बाद मैंने उसे अपने पापा की बातें बताईं कि कैसे वह देश के लिए खून बहाने वाले सैनिकों के बारे में बताते थे। मैं खुद जवान नहीं हो पाया था और पांच छोटे-भाई बहनों की उम्र का अंदाजा आप लगा सकते हैं। उस उम्र में हमने पापा को खोया था। पापा की बातें जब हीरा, यानी हीरू को बताया तो उसने कहा कि वह भी देश-समाज के लिए जान देगा। वह बॉर्डर फिल्म का गीत पसंद करता था, फौज में जाना चाहता था। परिस्थितियां वैसी नहीं थी, तो वह नहीं हो सका। लेकिन, जैसे ही वह 18 साल का हुआ तो रक्तदान और समाजसेवा में भिड़ गया। कई बार तीन महीने की रोक का पालन नहीं करते हुए जरूरतमंदों को खून देने के लिए दूसरे शहर तक चला जाता था। कोविड के दौरान जब कोई घर से नहीं निकल रहा था, वह जरूरतमंदों के लिए रक्तदान करने के लिए पटना के कैम्प पहुंच गया। समाजसेवा करते हुए ही शायद कोविड संक्रमण का शिकार हुआ। ‘शायद’ इसलिए कह रहा, क्योंकि बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने सारे कागजात रहते हुए भी उसे कोविड संक्रमित नहीं माना। पटना में कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे उस पैथोलॉजिस्ट और कोविड वार्ड में रखकर इलाज में घोर लापरवाही-अमानवीयता दिखाने वाले निजी अस्पताल के निदेशक से सरकार ने नहीं पूछा कि उन्होंने जैनेंद्र ज्योति की हत्या क्यों की?”

JJMF : जैनेंद्र ज्योति मेमोरियल फाउंडेशन क्यों बनाया गया

सरकार से फंड लेने के लिए नहीं, बल्कि जैनेंद्र ज्योति ने जाते-जाते जब खुद को ही संस्था बना लिया था तो उसे जैनेंद्र ज्योति मेमोरियल फाउंडेशन के रूप में सेवा के लिए उतार दिया गया है। रिपब्लिन न्यूज़ एक बार फिर जनता की आवाज के लिए नए तेवर में सामने आया है। यह सब क्यों? जैनेंद्र ज्योति के बड़े भाई और हमेशा जिगरी दोस्त रहे जीवन ज्योति कहते हैं-“हीरू बचपन से ही दाता रहा। छोटा था तो अपने पास जमा पैसे भी मुझे देता था। जाने से पहले जितने लोगों को देकर गया है, यह वही लोग जानते हैं। हम जानते हैं, लेकिन उसपर अब बात नहीं करते। सिर्फ पैसे ही नहीं, तन-मन से हीरू ने जितना कुछ, जितने लोगों के लिए किया- उसका उदाहरण कम दिखता है। हम समाजसेवा से विमुख न हों, इसलिए हीरू ने ही हमें रक्तदान, समाजसेवा और पत्रकारिता के जरिए भी सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने की हिम्मत दी है। हम उसी हिम्मत के भरोसे खुद लाश बनकर भी जिंदा नजर आते हैं। इस रविवार, यानी 15 दिसंबर को पटना के रेनबो होम्स में जरूरतमंद बच्चों के बीच बर्थडे मनाकर भोजन कराया जाएगा। बेगूसराय में साईं की रसोई के जरिए आमजन को भोजन कराया जाएगा।

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कुमार जितेंद्र ज्योति December 15, 2024 - 11:01 am

अपने संस्थापकों को हर संस्था याद करती है, लेकिन यह यहां औपचारिकता नहीं बल्कि प्रेरणा के रूप में लिखी दिख रही है।
न जानें कितने शरीर में लहू बनकर जिंदा है हमारा हीरा।

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